मैं सफ़र में हूँ मगर सम्त-ए-सफ़र कोई नहीं
क्या मैं ख़ुद अपना ही नक़्श-ए-कफ़-ए-पा हूँ क्या हूँ_सोनू सिंह
अंबेडकरनगर
कभी खून से सने थे हाथ, आज कूंची में भरे रंगों से अपने हाथ सराबोर कर रहा है। बात हो रही है, अंबेडकरनगर जेल से रिहा कैदी सोनू सिंह की जो आज अपने नसीब को संवारने निकल पड़ा है। जिला जेल की ऊँची-ऊँची दीवारों को जिसने अधीक्षक, हर्षिता मिश्रा की प्रेरणा से जीवंत चित्रों से सजाया था, उसी सोनू सिंह ने बताया कि अब वह आगे का जीवन कला प्रशिक्षक के रूप में अपने नए अवतार में बिताना चाहता है। बस एक ही सपना शेष है अब !! कभी 302 के मुजरिम रहे इस कै़दी के मन में विचार उत्पन्न हो रहे हैं कि कैसे वह जल्द से जल्द कला के क्षेत्र में अग्रिम प्रशिक्षण प्राप्त करके अन्य कैदियों के मध्य रहकर बाल सुधार गृहों में बंद बचपन व जेल के कैदियों के भविष्य को सुधरने का अवसर और रोज़ी-रोटी कमाने के अवसर प्रदान कर सके । उसका सपना जेल अधीक्षक, हर्षिता मिश्रा की आंखों से देखा गया था कभी, कि जेल के कैदी सुधर कर नेक राह पर चल सकें। वर्तमान में सोनू कलान्तर आर्ट ट्रस्ट, दिल्ली के सौजन्य से कला प्रशिक्षक की ट्रेनिंग प्राप्त कर रहे हैं। जल्द ही हमें दोबारा जिला जेल, अम्बेडकरनगर से सोनू की कलाकारी का पुनरावलोकन करने का मौका मिलेगा। इस उपलब्धि के लिए कैदी सोनू सिंह ने जेल अधीक्षक, हर्षिता मिश्रा को पूरा श्रेय दिया कि एकमात्र इनकी प्रेरणा से हमारे जीवन में जो बदलाव आया है वह और कहीं से नहीं, बल्कि जेल अधीक्षक हर्षिता मिश्रा की ही देन है। हम इनके आजीवन ऋणी और आभारी रहेंगे।