■श्रीमद् भागवत कथा का पांचवा दिन
सुल्तानपुर।
चाँदा के ईशीपुर गाँव में चल रही साप्तदिवसिय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान महा यज्ञ के पांचवे दिन प्रतापगढ़ से पधारे भगवताचार्य पंडित कृष्णदेव जी महाराज ने कहा कि संसार के नश्वर भोग पदार्थों की प्राप्ति में अपने समय, साधन और सामर्थ को अपव्यय करने की जगह हमें अपने अंदर स्थित परमात्मा को प्राप्त करने का लक्ष्य रखना चाहिए।
कथा को आगे बढ़ाते हुये आचार्य श्री ने कहा कि सृष्टि का सार तत्व परमात्मा है। इसलिए इसी से जीवन का कल्याण संभव है।पूतनावध, शकटासुर बध तृणावर्तबध जैसी भगवान की बाल लीलाओं का वर्णन किया।श्रीकृष्ण के मिट्टी खाने की शिकायत गोपालकों ने किया तो मैं यशोदा ने बाल कृष्ण को मुह खोलने को कहा तो मुख खोलते ही यशोदाजी ने देखा कि मुख में चर-अचर सम्पूर्ण जगत विद्यमान है। आकाश, दिशाएं, पहाड़, द्वीप, समुद्रों के सहित सारी पृथ्वी, बहने वाली वायु, वैद्युत, अग्नि, चन्द्रमा और तारों के साथ सम्पूर्णज्योतिर्मण्डल, जल, तेज अर्थात प्रकृति, महतत्त्व, अहंकार, देवगण, इन्द्रियां, मन, बुद्धि, त्रिगुण, जीव, काल, कर्म, प्रारब्ध आदि तत्त्व भी मूर्त दीखने लगे। पूरा त्रिभुवन है, उसमें जम्बूद्वीप है, उसमें भारतवर्ष है, और उसमें यह ब्रज, ब्रज में नन्दबाबा का घर, घर में भी यशोदा और वह भी श्री कृष्ण का हाथ पकड़े। बड़ा विस्मय हुआ माता को। श्री कृष्ण ने देखा कि मैया ने तो मेरा असली तत्त्व ही पहचान लिया है। श्री कृष्ण ने सोचा यदि मैया को यह ज्ञान बना रहता है तो हो चुकी बाललीला, फिर तो वह मेरी नारायण के रूप में पूजा करेगी। न तो अपनी गोद में बैठायेगी, न दूध पिलायेगी और न मारेगी। जिस उद्देश्य के लिए मैं बालक बना वह तो पूरा होगा ही नहीं। यशोदा माता तुरन्त उस घटना को भूल गयीं।
कथा के बीच बीच सुमधुर संगीत स्वर लहरियों से वातावरण भक्तिमय हो उठा। इसके पूर्व मुख्यजजमान गुरुप्रसाद मिश्र ने व्यास पीठ का पूजन किया।इस मौके पर सभाजीत मिश्र, उदयराज मिश्र, मुकेश, दीपक मिश्रा के अलावा बड़ी संख्या में महिलाओं ने भावपूर्ण कथा श्रवण किया।