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लॉन्ग कोविड (Long Covid) को पोस्ट कोविड सिंड्रोम या पोस्ट एक्यूट सीक्वल भी कहा जाता है. हालांकि अब तक इसके स्पष्ट कारणों का पता नहीं चल सका है.
नई दिल्ली. दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में कोरोना की दूसरी लहर (Coronavirus) ना सिर्फ तबाही के निशान छोड़ गया है, बल्कि इस बार जो लोग संक्रमित हुए हैं उनमें कोविड के लक्षण कई दिनों तक बने रहते हैं. नाक, मसूड़ों से खून बहना, गैस बनना, अपच होने जैसी बीमारियां, कोविड संक्रमण से उबरने के बाद लोगों को परेशान कर रहे हैं. मेडिकल टर्म में कोविड से उबरने के बाद भी लक्षणों से घिरे रहने को लॉन्ग कोविड (Long Covid) नाम दिया गया है.
वहीं एक अमेरिकी शोध में बताया गया कि लॉन्ग कोविड के मरीजों में कम से कम चार हफ्ते तक लक्षण बने रहते हैं. स्टडी के अनुसार लॉन्ग कोविड से परेशान लोगों में दर्द, सांस लेने में दिक्कत, बेचैनी, थकान और हाईब्लड प्रेशर की समस्या पाई गई. स्टडी में कहा गया है कि बिना लक्षण वाले लगभग हर पांचवे मरीज में लॉन्ग कोविड पाया गया.
फेयर हेल्थ एनजीओ के चीफ रॉबिन गेलबर्ड ने कहा कि कोरोना के लक्षण कम होने के बाद भी कई लोगों पर इसका लंबे समय तक असर है. उन्होंने दावा किया कि सर्वेक्षण की मदद से लॉन्ग कोविड के पेशेंट्स , बीमा पॉलिसी बनाने वाले, इसे खरीदने और बेचने वालों और शोधकर्ताओं को मदद मिलेगी.
मरीजों के मरने की आशंका 46 फीसदी अधिकइतना ही नहीं कोरोना से उबरने के 30 दिन या उससे कुछ अधिक समय के बाद उन मरीजों के मरने की आशंका 46 फीसदी अधिक थी, जिन्हें बीमारी के बारे में जानकारी होने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया. वहीं अस्पताल में भर्ती ना होने वालों में मौत की संख्या कम थी.
स्टडी में दावा किया गया है कि कोरोना के ऐसिम्प्टमैटिक मरीजों में से 19 फीसदी लोगों में इलाज और ठीक होने के 30 दिन बाद लॉन्ग कोविड के लक्षण पाए गए. वहीं अस्पताल में भर्ती होने वालों में 50 फीसदी और घर पर ही इलाज करने वालों में 27.5 फीसदी मरीजों में लॉन्ग कोविड पाया गया.
इसके साथ ही अलग-अलग उम्र के हिसाब से लॉन्ग कोविड के लक्षण पाए गए. बच्चों में आंत से जुड़ी समस्या पाई गई तो हीं पुरुषों की तुलना में महिलाओं में लॉन्ग कोविड की समस्या ज्यादा पाई गई. दूसरी ओर महिलाओं की तुलना में ज्यादातर पुरुषओं के दिल में सूजन की समस्या पाई गई. इसके साथ ही कुछ लोगों में डिप्रेशन के भी लक्षण देखे गए.
लॉन्ग कोविड को पोस्ट कोविड सिंड्रोम या पोस्ट एक्यूट सीक्वल भी कहा जाता है. हालांकि अब तक इसके स्पष्ट कारणों का पता नहीं चल सका है. एनजीओ की स्टडी के अनुसार इसके पीछे अहम वजह यह हो सकती है कि कोरोना शुरुआती दौर में शरीर के नर्व फाइबर्स को नुकसान पहुंचाता है. इसके ठीक होने की स्पीड भी बहुत धीमी है और ऐसी परिस्थिति में कम असरदार वायरस शरीर में बना रहता है.
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